कठपुतली कॉलोनी निवासी और मेरी मध्यरात्रि दुविधा
आमतौर पर यह कोई बड़ी बात नहीं होती, परन्तु, इस बालिका के चित्र ने मुझे तुरंत अपनों की याद दिला दी। बात ऐसे हुई की, कोरोना वायरस सम्भंदित शोधकार्य के सन्दर्भ में जब हम गूगल चाचा की सहायता ले रहे थे, तभी हमरे कंप्यूटर पर यह शब्द हमारे मन को भा गया। अब क्यूंकि यह शोध कार्य अंग्रेजो की भाषा में हम लिख रहे हैं, तो वह शब्द अंग्रेजी का ही है: ‘स्पेशिअल जस्टिस’ (spatial justice)। इसका अर्थ, मेरे हिसाब से ‘स्थानिक न्याय’ है, जिसे हम अपने समाज की समस्याओं को स्थान एवं न्यायिक दृष्टिकोण के सन्दर्भ में समझने का प्रयास करते हैं। तो हमने जब यह खोज शुरू की, तब हमारी नज़र इन महाशय के वेबसाइट पर पड़ी, जहां पहले ही पृष्ठ पर इस बालिका का हसमुख चेहरा आपको दिखेगा।
अब आप अगर हमारे जैसे मनुष्य हैं, तब आप भी किसी ऐसे मनुष्य के चित्र को देख कर यह सोचते होंगे, यह तो हमारे परिवार के जैसा कोई है.. कोई अपना। फिर दूसरा सवाल मेरे मन में आया, की यह कौन गोरे महाशय हैं जो इतने प्यार से एक नाबालिग बालिका के तस्वीर को अपने वेबसाइट पर ताल-थोक के डाल रखें हैं, जैसे इनके ही कोई रिश्तेदार हों? बस यही कारण हमरी भैंसवा गईल पानी में, और हमने कुछ घंटे यहीं सोच में बिता दिए। इस दुविधा को व्यक्त करने के लिए मुझे तो अपनी मातृ भाषा का ही सहारा लेना पड़ा, जिसके बिना भावनाओं को व्यक्त करना कठिन हो जाएगा। और ऐसे भी, बाद में पता चला यह महाशय तो इस युग के ज्ञानी समुदाय से हैं, तो हमने कहाँ इनको हम क्या ज्ञान देंगे।
अब नीचे आगे पढ़ने के बाद, हमने देखा की इन्होने ने उन महाशय का नाम भी लिखा है जो इस चित्र के छायाकार थे। उनका नाम ‘जोनाथन म. जोन्स’, इन्होने आभार सहित लिखा है, यह कहते हुए की इन्होने जोनाथन महाशय से अनुमति लेने के बाद ही इस चित्र का प्रयोग अपने वेबसाइट पर किया है। गौर की बात यह है की, यह ज्ञानी महाशय जी एक प्रोफेसर हैं जो की एक वीडियो लेक्चर में भी इस चित्र का प्रयोग करते हैं। अब गलती यह हो गयी, की ‘कठपुतली’ के बजाये इन्होने ‘कठपुति’ लिख रखा है। अब हमरी दुविधा तो यही से शुरू हुई, की ई ससुरा ‘कठपुति’ का होत है? यह दुविधा भी हमरे गूगल चाचा ने दूर कर दी, जब हमने कठपुति को कॉपी पेस्ट करके खोज बिन की।
तब जा के समझ आया की, जब यह महाशय लोग ‘कठपुति निवासी’ शब्द का प्रयोग कर इस नाबालिग बालिका के चित्र को विभिन्न प्रकार से प्रयोग कर रहे हैं, तब उनको यह सोचने या लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ी की, क्या इस बालिका की अनुमति ली गयी थी? अगर हाँ, तो उसका नाम लिखने में क्या कठिनाई थी? और चित्र जिस मनुष्य का है, उसके नाम के बजाए छायाकार के नाम का प्रचार करना थोड़ा आपत्तिजनक माना जा सकता है। आज के युग में, दो प्रकार के विचार हो सकते हैं। पहला, यह तो नाबालिग है तो उसके नाम को गुप्त रखना आवश्यक है। परन्तु, उसका चेहरा जब आप बेझिझक दिखा सकते हैं, तो इस तर्क का कोई मतलब नहीं रह जाता। दूसरा, अनुमति की जब हम बात करते हैं, तो प्रोफेसर साहब छायाकार की अनुमति एवं आभार जताना आवश्यक समझते हैं, परन्तु उस नाबालिग बालिका का नहीं। और जहां तक हमें पता है, यूरोप में आप ऐसा उनके बच्चों के साथ कभी नहीं कर सकते। ना तो उनके माता-पिता आपको अनुमति देंगे, और अगर दे भी दें, तो भी कानूनी तौर पर आप समस्या में पड़ सकते हैं। अन्यथा आपने, अनुमति लिखित में ले रखी हो। तो सवाल यह उठना चाहिए, की जब इन छायाकार ने या इस प्रोफेसर महाशय ने इस नाबालिग बालिका के चित्र को बेझिझक अपने व्यक्तिगत एवं शोधकार्य के सन्दर्भ में अपने वेबसाइट पर डाल रखा है, तो वह लिखित अनुमति किधर है? क्या उस बालिका ने स्वयं, या उसके माता-पिता ने, यह अनुमति लिखित में दी?
इस विषय में आपकी क्या राय है?
References:
If you would like to cite this page here is a suggested citation as part of ISSN 2700-290X: Kumar, A. (2020) “कठपुतली कॉलोनी निवासी और मेरी मध्यरात्रि दुविधा” In Rural Human Review, #10, November 2020. Muenster: Rural Human Review. Retrieved month dd, yyyy from https://ruralhuman.com/?p=1730
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